शनि गृह ज्योतितिष एंव खगोलिय तत्य

मित्रों भारतीय ज्योतिष में शनि एक वृद्ध गृह है और किसी भी राषि पर इसकी समयवधि सबसे ज्यादा है। पाठकों सबसे पहले हम बात करते है। शनि गृह के खगोलिय तत्य की और इसके वैज्ञानिक आधार की मित्रों हमारे और मण्डल मे शनि सूर्य से छठये क्रम का गृह है बड़ा ग्रह होने की दृष्टि से यह शनि गृह सौर मण्डल के दूसरे क्रम पर आता है। शनि गृह गैस के बड़े गोले के रूप मे है। और इसकी (त्ंकपने) पृथ्वी से लगभग 9 गुनी बड़ी है भार की दृष्टि से लगभग 95 गुना भारी है। जबकी पृृथ्वी से घनत्व का लगभग 8वां भाग है शनि का नाम शनि कृषि कार्य के रूमन देवता के नाम के ऊपर पड़ा है।

शनि की भीतरी सतह संभवतः लोहे और निकल तथा सिलिकन और आॅक्सीजन से बनी चट्टान के द्वारा बनी है और यह भीतरी सतह के ऊपर धात्विक हाईड्रोजन से बनी सतह है शनि गृह हलके रंग का पीला और सफेद रंग अमोनिया के किस्टल के कारण है। धात्विक हाईड्रोजन मे विधुत तरंगोें की सतह के कारण शनि गृृह मे चुंबकिय क्षेत्र प्रथ्वी की तुलना मे कम है। लेकिन चुंबकिय चाल प्रथ्वी की तुलना मे 580 गुनी अधिक है। और ऐसा शनि के बड़े साइज के कारण है गुरू की तुलना शनि की चुंबकिय शक्ति मात्र 20वां हिस्सा है। शनि पर हवा की तीव्रता 1800 कि.मी. प्रति घंटा तक है। जोकि गुुरू की तुलना मे कम है। तथा नौ नेप्चयूल की तुलना मेे शनि की गति कम है शनि पर चलने वाली हवाओं की गति सौर मण्डल से सभी गृहों के दूसरे कम की गति है

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शनि मुख्य रूप से छल्ले की पदति पर आधारित है। इसमे 9 सम्पूर्ण मुख्य छल्ले है जबकि 3 विखंडित रूप से चाप के रूप मे है। शनि गृह मुख्य रूप से बर्फ के कणों से बना है। और कुछ थोड़ा सा हिस्सा पथरीले मलवे से या धूल के रूप में बना है और इसकी अपनी कक्षा पदति है इसमे कुल 62 चन्द्रमा है जिसमें से 63वां चन्द्रमाओं के आधिकारिक रूप से नाम है। ये चन्द्रमा उनमें शामिल नहीं है। जो कि शनि का वलय (रिंग) बनातेे है ये तो सैकड़ों छोटे चन्द्रमा से मिलकर बना है । शनि के सबसे बड़े चन्द्र का नाम टाइटन है यह टाइटन सौर मण्डल के बुध गृह से भी बड़ा है। लेकिन इसका वजन बुध से कम है। सौर मण्डल मे केवल चन्द्रमा पर ही वांचित वातावरण उपलब्ध है ।वैज्ञानिकों के आधार पर शनि की धूर्णन गति तीन प्रकार की मानते है। पहली पद्धति के अनुसार अपने अक्ष पर 10 घंटे 14 मिनट के समय मे पुरा होता है। सन् 2007 में पाया गया कि शनि से रेडियों उत्सर्जन हो रहा था लेकिन वह शनि की धूर्णन गति से मेल नही खाता था जिसका कारण संभवतः शनि गृह के ऊपर पानी की वाष्प के कारण समस्या हो रही है।

शनि एक ऐसा गृह है जो सामान्य रूप से नंगी आखों से प्रथ्वी से देखा जा सकता है। यह पांच ग्रहों मे से एक क्योकि यह एक चमकदार गृह है 17 दिसम्बर 2002 मे शनि की प्रथ्वी को अनुरूप होने के कारण सबसे अधिक चमकदार देखा गया था।

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शनि की आंतरिक सतह बहुत गर्म है। जिसका तापमान 11,700 डिग्री से.टि गे्रड तक पंहुच जाता हैं शनि केे वक्री रहने की अवधि लगभग साडे़ चार महीने की होती है और शनि लगभग 1 वर्ष मे एक बार ही शनि वक्री होता है जबकि इसके अस्त होने की अवधि लगभग एक महीना होती है। शनि सूर्य के चारों और अपनी कक्षा मे लगभग 30 वर्षो मे एक चक्कर पूरा कर लेता है इस प्रकार एक राशि मे ढाई वर्ष रहता है। एक राशि का तत्पर्य 30ं डिग्री होगा अर्थात शनि की 30ं डिग्री जाने मे 30 माह का समय लगता है। दूसरे शब्दो मे कह सकते है कि 1ं डिग्री चलने मे शनि को 1 महीना अर्थात 30 दिन का समय लगता है। इस प्रकार शनि की ब्रम्हाॅण्ड मे औसत गति 2ं प्रतिदिन होती है। लेकिन जब शनि वक्री से मार्गी होता है। गति मे परिवर्तन होता है। तो यह गति 5ं प्रतिदिन तक तीव्रतम पंहुच जाती है जब-जब यह शनि वक्र होता है तब-तब इसका बल बड़ जाता हैै। यह दूसरे शब्दों मे कह सकते है कि यह अधिक प्रभावषाली हो जाता है। अर्थात जिन कुण्डलियों मे शनि अनुकूल होता है तो जातक को बहुत लाभ और यदि प्रतिकूल है तो बहुत अशुभ फल देता है। शनि चाहे शुभ फल दे रहा हो या अशुभ फल दे रहा हो वक्री शनि की ताकत बढ़ जाती है हां अष्त होने पर शनि का बल हमेशा कम ही रहेगा ।मित्रों हमारे भारतीय ज्योतिष मे शनि हमेशा पांच राशियों मे प्रभावित करते हुऐ चलता है एक तो शनि जिस राशि पर रहता है उसको साडे़साती और अपने अगल सगल का राशि पर साड़ेसाती का प्रभाव डालता है। और अपनी राशि मे चैथे और आठवीं राशि पर ढ़ैया चाल की गति से भी शनि प्रभाव डालता है। ऐसे समय मे जाकत की चाहिये है। शनि की शांति के लिये कुछ ना कुछ उपाय अवश्य करें।

  1. शनिवार के दिन कच्चा दुध बहते पानी मे ‘ऊं’ श’ शनिच्यराय नमः म.त्र का जाप करते हुयेे डाले।
  2. शनिवार के दिन सरसो का तेल मे अपना प्रतिदिम्ब देखकर शनिदेव को चढ़ाये।
  3. शनिवार के दिन काले तिल व कोई भी काला वस्त्र दान करें।
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