मंगल को पृथ्वी का देवता कहा जाता है ग्रहों के कुटुंब में रवि पृथ्वी के पिता के स्थान में हैं और चंद्र माता के स्थान में हे इसलिए मंगल में रवि और चंद्र दोनों गुणों का मिश्रण पाया जाता है भारत में विवाह के समय वर वधु की पत्रिकाओं में मंगल का बहुत विचार किया जाता हे आमतौर पर मंगल के वर मंगल की वधु को ही ठीक समझी जाती हे अथवा गृ और शनि का बल देखा जाता है जिसकी कुंडली में लग्न, चतुर्थ,सप्तम,अस्टम व् व्यव स्थान में मगल हे तू उस कन्या के पति की मृत्यु होती हे इस योग के अपवाद भी है।
यदि लग्न में मंगल चतुर्थ में वृश्चिक सप्तम में मकर अस्टम में कर्क तथा व्यय में धनु राशि हो तो मंगल वैधव्य योग अथवा द्विभार्या नहीं करता कन्या की कुंडली में पति का विचार करते समय रवि और मंगल इन ग्रहों का भी विचार करना चाहिए! रवि की इस्थिति से पति का बल आयु शिक्छा, दिशा और प्रेम इस विसयों का विचार करना चाहिए मंगल की इस्थिति में पति की आयु , इज़्ज़त, व्यवसाय उन्नति, उत्साह आदि का विचार करना चाहिए कुंडली में यदि रवि शनि द्वारा दोसित हो तो पति अधिक उम्र का रोगी मिलता हे ऐसा पाश्चातय ज्योतिषियों का मत है।
हमारा अनुभव थोड़ा भिन्न हे ऐसी इस्थिति में विवाह देर से होता हे ५० जगह प्रयत्न करने के बाद ही सम्बन्ध पक्का होता हे विवाह के समय पिता दारिद्रय होता हे उसकी मृत्यु के बाद ही विवाह होता हे और मनगल शनि के द्वारा दोसित हो तो केंद्र द्विद्वादस अथवा प्रतियोग हो या मंगल से चौथे या आठवे इस्थान में शनि हो तो अशुभ फल मिलते हैं विधवा होना ,पति से विभक्त होना आदि फल मिलते हैं जब जन्म स्थान से मंगल का गोचर शनि का भरमण होता हे तब ये फल मिलते हैं।
कुछ उदाहरण:
- यदि १,४,७,८,१२ वे भाव में कोई पाप गृह हो तो मंगल दोष का परिहार होता है।
- यदि बलवान गुरु ,शुक्र लग्न अथवा सप्तम में हों तो मंगल दोष का परिहार होता है।
- यदि मंगल पर गुरु या शुक्र की दृस्टि हो तू भी मंगल दोष कला परिहार होता है।
- यदि मंगल नीच का या सत्रु राशि में हो तो मंगल दोष ख़त्म हो जाता है।
- केंद्र या त्रिकोण में शुभ ग्रह तथा ३ ६ भाव में अशुभ गृह हों तू मंगल दोष ख़तम हो जाता है।
- यदि मेष या सिंह लग्न हो तू भी मंगल दोष ख़त्म हो जाता है।
- मंगल के साथ किसी भी सुबह ग्रहों का होना मंगल के कुप्रभाव को ख़त्म करता है।